Thoda Game Between The Pashi And Shathi Groups At The Mata Kamaksha Hariyali Fair Theog – Amar Ujala Hindi News Live

पारंपरिक ठोडा खेल
– फोटो : अमर उजाला
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महाभारत काल की युद्ध शैली को शिमला संसदीय क्षेत्र के दूरदराज के ग्रामीणों ने ठोडा खेल के रूप में जीवंत रखा है। जिला शिमला की तहसील ठियोग और कोटखाई में सांबर-ब्यौण गांव में आयोजित माता कामाक्षा(कामाख्या) के हरियाली मेले में इस पारंपरिक ठोडा खेल की झलक देखने को मिली। जिम्मू के पाशी और खशधार के शाठी ठोडा दल के खिलाड़ियों के बीच ठोडा खेला गया। इस दाैरान महाभारत काल की युद्ध शैली के ठोडा खेल में पाशी और शाठी दलों के बीच जमकर तीर चले।
कामाक्षा माता मंदिर कमेटी के अध्यक्ष सुरेंद्र पाल चौहान ने कहा कि मेला रविवार को संपन्न होगा, जिसमें शिक्षा मंत्री रोहित ठाकुर और स्थानीय विधायक कुलदीप सिंह राठौर विशेष रूप से मौजूद होंगे। उन्होंने कहा कि यह मेला हर तीसरे साल होता है। डोमेश्वर गुठाण महाराज का ताला आने के बाद मेला शुरू होता है और पांच दिन चलता है। इस दाैरान माता कामाक्षा यहां विराजमान रहती हैं। इसके बाद वापस अपने देवालय कलाहर जाती हैं। डोम देवता कमेटी कलाहर के सचिव और मेला कमेटी के सदस्य रमेश शर्मा ने कहा कि यह मेला व ठोडा खेल महाभारत काल से चल आ रहा है।
विशेष लिबास पहने ठोडा के खिलाड़ियों ने न सिर्फ विरोधी आक्रमण को झेला बल्कि धनुष और वाण से उसका जवाब भी दिया। ठोडा नृत्य के इस युद्ध में थककर बाहर होने वाले को हारा हुआ माना जाता है। आखिर में जिस टीम के सबसे ज्यादा खिलाड़ी मैदान में रहे, उन्हें जीत का पुरस्कार दिया जाता है। मान्यता है कि ठोडा महाभारत काल की युद्ध शैली है। पहले यह युद्ध शैली थी जो अब खेल का रूप ले चुका है। इस खेल में प्रयोग किए जाने वाले तीर विशेष चांव की लकड़ी से बनते हैं। इसमें हिस्सा लेने वाले खिलाड़ियों के पास तीर कमान, ढांगरू, सिलारा, डागरा और चमड़े का जूता पहना जाता है। खेल में पैर में पर तीर मारने पर फाउल माना जाता है। इस दौरान मैदान में खिलाड़ियों में ठोडा खेलने के लिए काफी उत्साह रहा। ठोडा खेल लोगों के आकर्षण का केंद्र बना रहा।

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