Tiger Attack: Why Are Mp’s Tigers Becoming ‘man-eaters’ Now? They Have Killed Five People In Last One Month – Amar Ujala Hindi News Live

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मध्य प्रदेश में बढ़ रहे बाघोें के हमले
– फोटो : अमर उजाला
टाइगर स्टेट कहे जाने वाले मध्य प्रदेश में अब बाघ आदमखोर होते जा रहे हैं। आए दिन प्रदेश के अलग- अलग जिलों में टाइगर अटैक की खबरें सामने आ रही हैं। बीते एक महीने की बात करें तो पांच लोगों को बाघ अपना निवाला बना चुका है। आखिर क्या वजह है कि बाघ अब इंसानों का शिकार करने लगे हैं। क्यों उन्हें रिहायशी इलाकों, सड़कों पर आए दिन देखा जा रहा है। पढ़िए इस रिपोर्ट में-
देश में सबसे ज्यादा बाघ होने और उनकी जन्म वृद्धि दर में मध्य प्रदेश आगे है। पिछली रिपोर्ट के मुताबिक प्रदेश में 785 बाघ हैं। उसे टाइगर स्टेट का तमगा मिला हुआ है। मध्य प्रदेश की भौगोलिक स्थिति इतनी बेहतर है कि चीते भी यहीं बसाए गए हैं। लेकिन अब बाघ के हमलों से लोगों की मौत चिंता का कारण बनती जा रही है।

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मध्य प्रदेश में बढ़ रहे बाघोें के हमले
– फोटो : अमर उजाला
बीते एक माह में पांच लोगों की मौत
पहले जानते हैं बीते एक महीने में कब-कब बाघ ने हमले किए हैं और कितने लोगों की जान चुकी है।पांच जनवरी को शहडोल जिले में बाघ के हमले में 48 साल के जमुना बैगा की मौत हो गई। ये घटना अंतरा गांव के पास बिरहुलिया वन क्षेत्र में हुई। पचगांव-बिरहुलिया के पास उसके शव के टुकड़े मिले। 14 जनवरी को छिंदवाड़ा में सौंसर के पीपला में एक किसान गुलाब वरकड़े को बाघ ने मार डाला। मृतक की पत्नी मीना वरकड़े ने बताया कि बाघ ने किसान की गर्दन खा ली। इससे एक दिन पहले, सोमवार को पेंच टाइगर रिजर्व के बफर जोन में एक युवक पर भी बाघ ने हमला किया था।
इसी प्रकार 16 जनवरी को सिवनी में बाघ के हमले में बुजुर्ग की मौत हो गई। खवासा वन परिक्षेत्र के पिंडरई बीट के बावली टोला गांव के खेत में बुजुर्ग तुलसीराम भलावी (70) पर शाम लगभग 5 बजे बाघ ने हमला कर मार डाला। वहीं दिसंबर महीने की 23 तारीख को उमरिया और बालाघाट जिले में बाघ ने दो लोगों को अपना शिकार बनाया था। उमरिया जिले के ‘बांधवगढ़ टाइगर रिजर्व’ के खितौली क्षेत्र में एक बाघ के हमले में 45 वर्षीय खैरूहा बैगा नामक व्यक्ति की मौत हो गई। वहीं बालाघाट की तिरोड़ी तहसील के अंबेझरी गांव में अपने खेत में काम कर रहे 55 वर्षीय किसान सुखराम उइके की बाघ द्वारा किए गए हमले में मौत हो गई। पन्ना जिले के इटवांकला गांव में बाघ ने बकरी चरा रहे 10 वर्षीय बालक पर हमला कर दिया। इससे वह गंभीर रूप से घायल हो गया है।

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मध्य प्रदेश में 785 बाघ हैं।
– फोटो : अमर उजाला
हमलों के पीछे क्या है वजह
मध्य प्रदेश में बाघ के हमले बढ़ना चिंता का विषय है। इसके पीछे की वजह को देखा जाए तो मानवीय टकराव और बाघ के बढ़ते कुनबे के लिए इलाका कम पड़ना माना जा रहा है। बाघों के जानकार अजय दुबे ने बताया कि घटते जंगल और जंगलों में बढ़ता मानव दखल के कारण ऐसा हो रहा है। जंगलों में लगातार कटाई के साथ निर्माणों की संख्या बढ़ाई जा रही है। इसके अलावा प्रदेश में टाइगर की संख्या के हिसाब से उनका वन परिक्षेत्र का दायरा भी सीमित होता जा रहा है। बाघों के आहार के लिए मवेशी जंगल में कम पड़ने लगे हैं, भोजन की तलाश में वे बाहर निकल रहे हैं। बाघ प्रेमी राशिद नूर खान ने बताया कि स्टडी के मुताबिक एक बाघ अपनी टेरिटरी करीब 50 वर्ग किलोमीटर का दायरे में बनाता है। वर्तमान में अभ्यारण्य और टाइगर रिजर्व में क्षमता से अधिक बाघ मौजूद हैं। ऐसे में बाघों का आपसी संघर्ष तो बढ़ रही रहा है बल्कि मानव-बाघ संघर्ष की घटनाएं भी बढ़ रही हैं। उन्होंने बताया कि राजधानी भोपाल के नगरीय सीमा क्षेत्र में ही 18 से 22 बाघों की मूवमेंट अब स्थाई तौर पर हो रहा है। केरवा, कलियासोत, समसगढ़ समेत अन्य रहवासी क्षेत्र में बाघ मवेशियों का शिकार कर रहे हैं। यह क्षेत्र ही पहले जंगल थे जो अब घनी आबादी की ओर आगे बढ़ते जा रहे हैं।
कैसे बचा जाए हमलों से
बाघों पर खासा अध्ययन करने वाले अजय दुबे का कहना है कि बाघों को आदमखोर कहना थोड़ा गलत होगा। बाघों के हमले इंसानों पर बढ़ना फॉरेस्ट विभाग की लापरवाही कही जाएगी। वे लोगों को जागरूक करें, शाम के समय बाघों के विचरण का समय होता है, तब वे ऐसे इलाकों में न जाएं, जब भी आप जंगल एरिया से निकलें, अकेले न जाएं और बात करते हुए जाएं, बैठें नहीं क्योंकि ऐसे समय में बाघ हमला करता है। कुल मिलाकर वन विभाग लोगों में जागरूकता फैलाए, नियमित मॉनिटरिंग करे तो बाघों के हमले रोके जा सकते हैं।
एक नजर इस रिपोर्ट पर भी डालें
पिछले साल राज्य सरकार की केंद्र को भेजी गई में इस बात का खुलासा हुआ कि बीते एक साल में 86 लोग की मौत बाघ और तेंदुओं के हमले से हुईं। इसमें बाघों के हमले के मामले सबसे ज्यादा हैं। रिपोर्ट बताती है कि बीते दस सालों में यह आंकड़ा दूसरी बार सर्वाधिक है। आंकड़ों के मुताबिक साल 2013-14 में 48 मौत, 2014-15 में 61, 2015-16 में 52, 2016-17 में 53, 2017-18 में 42, 2018-19 में 47, 2019-20 में 51, 2020-21 में 90, 2021-22 में 57 और 2022-23 में 86 लोगों की मौत इन वन्य प्राणियों के हमले से हुईं।

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