जानिए कैसे बनती है महाकाल की भस्म
पौराणिक कथाएं कहती हैं कि पहले के समय में महाकाल की आरती या फिर उनके शृंगार के लिए भस्म श्मशान से ही लाई जाती थी, लेकिन धीरे-धीरे इस परंपरा में बदलाव हुआ और भस्म खुद बनाने का विधान शुरू हुआ। वर्तमान स्थिति में आरती या शृंगार के लिए महाकाल की भस्म को कपिला गाय के गोबर से तैयार किया जाता है। गोबर के उपलों में शमी, पीपल, बड़, अमलतास और बेर की लकड़ियों को जलाकर मिलाया जाता है। यही नहीं, भस्म को तैयार करते समय इन सभी सामग्रियों के साथ कई अन्य प्रकार की जड़ीबूटियां भी मिलाई जाती हैं। इसके अलावा, कपूर और गुग्गल का भी मिश्रण किया जाता है, ताकि भस्म सुगन्धित बनाई जा सके। महाकाल को चढ़ने वाली भस्म न सिर्फ आयुर्वेदिक रूप से उत्तम है बल्कि ज्योतिषीय दृष्टि में भी इसका खासा महत्व है। महाकाल की भस्म का एक कण भी अगर कोई अपने घर पर रख ले तो उसके रोग-दोष मिट जाएंगे।
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श्री महाकालेश्वर को रजत मुकुट दान दिया
श्री महाकालेश्वर मंदिर में पधारे दुष्यंत कुमार वशिष्ठ ने पुरोहित नवीनत शर्मा और रूपम शर्मा की प्रेरणा से भगवान श्री महाकालेश्वर को एक नग चांदी का छत्र मय भेट किया। जिसका कुल वजन 967 ग्राम है। जिसे श्री महाकालेश्वर मंदिर प्रबंध समिति के उपप्रशासक एस. एन. सोनी और सहायक प्रशासक मूलचंद जूनवाल द्वारा दानदाता से प्राप्त पर दानदाता का सम्मान किया जाकर विधिवत रसीद प्रदान की गई। यह जानकारी मंदिर प्रबंध समिति के कोठार शाखा के कोठारी मनीष पांचाल द्वारा दी गई।

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