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लोकसभा में विपक्ष के नेता और कांग्रेस सांसद राहुल गांधी ने शुक्रवार (26 जुलाई) को कहा कि जाति जनगणना और आरक्षण की ऊपरी सीमा 50 फीसदी हटाने की कांग्रेस की मांग के पीछे छत्रपति शाहूजी महाराज के क्रांतिकारी आदर्श प्रेरणा स्रोत हैं। बता दें कि 122 साल पहले यानी 1902 में उन्होंने शिक्षा और सरकारी नौकरियों में 50 फीसदी आरक्षण लागू कर एक क्रांतिकारी कदम उठाया था। कोल्हापुर के शासक रहे शाहूजी महाराज ने पिछड़ी जाति के लोगों को तब 50 फीसदी आरक्षण लागू किया था। उन्होंने 26 जुलाई, 1902 को ही इस आरक्षण के आदेश से जुड़ा गजट प्रकाशित करवाया था।

राहुल गांधी ने शाहूजी महाराज के गजट अधिसूचना वाली तस्वीर को सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स पर साझा करते हुए लिखा है कि देश में जाति जनगणना कराने, आरक्षण पर 50% की सीमा हटाने और हाशिये पर पड़े लोगों के लिए न्याय की हमारी मांगें शाहूजी महाराज के क्रांतिकारी आदर्शों से ही प्रेरित हैं। उन्होंने ट्वीट किया, “सामाजिक न्याय के प्रति राजर्षि शाहू महाराज का योगदान अपने समय से बहुत आगे था। देश में सामाजिक न्याय की लड़ाई में अग्रणी, सामाजिक सुधारों पर उनके आजीवन काम का मुझ पर बहुत प्रभाव पड़ा है। राजर्षि शाहू महाराज ने 1902 में आज ही के दिन ‘क्रांतिकारी गजट’ प्रकाशित करने का निर्णय लेकर शिक्षा को सार्वभौमिक बनाया था। साथ ही इसके माध्यम से शाहूजी महाराज ने समाज के कमजोर वर्गों को नौकरियों में 50% आरक्षण देकर इन्हें मजबूत करने का काम किया था। शाहू महाराज के समर्थन और प्रयासों ने बाबा साहब  डॉ. भीम राव अंबेडकर को भी प्रभावित किया था, जिन्होंने  आरक्षण को संविधान में शामिल किया था। जाति जनगणना, आरक्षण पर 50% की सीमा हटाने और हाशिये पर पड़े लोगों के लिए न्याय की हमारी मांगें शाहू महाराज के क्रांतिकारी आदर्शों से प्रेरित हैं।”

बता दें कि 1902 में शाहूजी महाराज द्वारा पिछड़ों के लिए नौकरियों और शिक्षा में 50 फीसदी आरक्षण का कोटा लागू करना देश के इतिहास में आरक्षण देने का पहला उदाहरण रहा है। शाहू महाराज भी अंबेडकर के शुरुआती समर्थकों में से एक थे और उनके सामाजिक सुधार दृष्टिकोण को सामाजिक न्याय के लिए जरूरी मानते थे। 

कौन थे शाहूजी महाराज?

मराठा छत्रपति शाहू महाराज भोंसले राजवंश के राजा थे। उन्हें कोल्हापुर की भारतीय रियासतों का पहला महाराजा कहा जाता है। शाहूजी महाराज का शासन काल 1894 से 1922 तक था। वह सामाजिक सुधारक ज्योतिराव गोविंदराव फुले से काफी प्रभावित थे। छत्रपति शाहू ने अपने 28 सालों के शासनकाल में कई सामाजिक सुधार किए। खासकर उन्होंने पिछड़े समुदाय और निचली जातियों के लिए कई बदलाव किए। उन्होंने सभी को समान अवसर दिया। 

शाहू महाराज ने ये सुनिश्चित किया कि शिक्षित छात्रों को रोजगार मिले। उन्होंने कमजोर वर्गों के लिए 50 फीसदी आरक्षण दिया था। उन्होंने छुआछूत खत्म करने के लिए अपने दलित सेवक गंगाराम कांबले की चाय की दुकान पर चाय भी पी थी, जो उस वक्त के लिए बड़ी बात थी। 26 जून 1874 को पैदा हुए शाहूजी महाराज महाप्रतापी छत्रपति शिवाजी महाराज के वशंज थे। उन्होंने लड़कियों के लिए अलग से स्कूल-कॉलेज की स्थापना भी की थी। उन्होंने देवदासी प्रथा पर प्रतिबंध लगाने की भी सिफारिश की थी। उन्होंने 917 में विधवा पुनर्विवाहों को वैध बनाया और बाल विवाह को रोकने के लिए कोशिश की थी।

कांग्रेस का नया दांव क्या?

महाराष्ट्र में शाहूजी महाराज की पूजा की जाती है। कांग्रेस उनके बहाने आगामी विधानसभा चुनाव में अपनी राजनीतिक रोटी सेंकना चाहती है। कांग्रेस जाति जनगणना और आरक्षण की 50 फीसदी सीमा को हटाने की मांग करती रही है। ऐसा माना जाता है कि कांग्रेस अन्य पिछड़ा वर्ग और दलितों को लुभाने के लिए ऐसा कर रही है। महाराष्ट्र में ओबीसी की आबादी सबसे ज्यादा 52 फीसदी के करीब मानी जाती है। यह समुदाय भाजपा का प्रमुख वोट बैंक रहा है लेकिन हाल के दिनों में मराठों को भी इस श्रेणी में 10 फीसदी आरक्षण देने से राज्य का ओबीसी समुदाय एकनाथ शिंदे की अगुवाई वाली एनडीए सरकार से नाराज है। दूसरी ओर मराठा, जो राज्य की आबादी का लगभग 33 प्रतिशत हैं और कुनबी जाति के तहत ओबीसी सर्टिफिकेट की मांग कर रहे हैं, भी शिंदे सरकार से नाराज हैं। शाहूजी महाराज इसी जाति से ताल्लुक रखते थे।

ऐसी स्थिति में कांग्रेस ओबीसी और मराठा वोटरों के बड़े धड़े में सेंधमारी कर और उसे अपने पक्ष में लामबंद कर आगामी विधान सभा चुनावों में बड़ा लाभ हासिल करना चाहती है। माना जा रहा है कि राहुल गांधी द्वारा शाहूजी महाराज को जाति गणना और आरक्षण की लड़ाई का प्रेरणास्रोत बताना इसी रणनीति का हिस्सा है।



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