Electronic Voting Machine (EVM) information in hindi भारत एक लोकतान्त्रिक देश है. यहाँ की सरकार यहाँ की जनता द्वारा चुनी जाती है. जिस पद्धति द्वारा सरकार गठन के लिए लोग अपने अपने क्षेत्र से लोकसभा या विधानसभा के लिए अपना प्रतिनिधि चुनते हैं, उसे चुनाव कहा जाता है. चुनाव भारत के ‘चुनाव आयोग’ की देख –रेख में होता है. स्वतंत्रता के बाद भारत का पहला चुनाव 25 अक्टूबर 1951 से 27 मार्च 1952 के बीच हुआ. इस दौरान चुनाव के समय वोट बैलेट बॉक्स के इस्तेमाल से होता था, जिसमे एक विशेष काग़ज़ पर अपने भरोसेमंद उमीदवार के चुनाव चिन्ह पर निशान लगाकर डालना होता था. धीरे -धीरे इस तरीक़े में बहुत सी खामियां और भ्रष्ट्राचार आते गये. कहीं -कहीं बूथ लूटने जैसी घटनाओं को देखा गया. इन सब बातों को ध्यान में रखते हुए भारत के चुनाव आयोग ने एक ऐसे सिस्टम की कल्पना की, जिसमे भ्रष्टाचार कम से कम हो और लोकतंत्र पर कोई खतरा न आने पाए. इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन जिसे संक्षिप्त में ईवीएम भी कहा जाता है, इसी कल्पना की देन है.
इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन की जानकारी
Electronic Voting Machine information in hindi
ईवीएम के इतिहास पर एक नज़र (Electronic Voting Machine hory)
सन 1980 में एम.बी. हनीफा ने पहली बार भारत के चुनाव के लिए वोटिंग मशीन का आविष्कार किया. ये दरअसल ‘इलेक्ट्रानिक रूप से संचलित वोटों की गिनती करने की मशीन’ थी. पहली बार इसे तमिलनाडू के छः शहरों में इसके मूल रूप के साथ लाया गया. सन 1989 में भारतीय चुनाव आयोग ने इसे ‘इलेक्ट्रॉनिक को- ऑपरेशन ऑफ़ इंडिया लिमिटेड’ के साथ मिलकर इसे साधिकार किया. ईवीएम के इंडस्ट्रियल डिज़ाइनर आइआइटी बॉम्बे के फैकल्टी सदस्य थे.
ईवीएम के विनिर्माता (Electronic Voting Machine manufacturers)
ईवीएम को सर्वप्रथम ‘इलेक्ट्रॉनिक को- ऑपरेशन ऑफ़ इंडिया लिमिटेड’ ने बनाया. उसके बाद चुनाव आयोग ने अपनी देख- रेख में दो बड़ी इलेक्ट्रॉनिक कंपनियों को इस काम के लिए चुना. ये दो कम्पनियां हैं-
बैंगलोर स्थित भारत इलेक्ट्रॉनिक लिमिटेड और
हैदराबाद स्थित इलेक्ट्रॉनिक कारपोरेशन ऑफ़ इंडिया
बैंगलोर स्थित भारत इलेक्ट्रॉनिक लिमिटेड भारत सरकार के अधीन काम करती है, और मुख्यतः भारतीय सशस्त्र बल के लिए इलेक्ट्रॉनिक सामग्रियां तैयार करती है. हैदराबाद स्थित ई.सी.आई.एल. भी भारत सरकार के अधीन है, और ‘डिपार्टमेंट ऑफ़ एटॉमिक एनर्जी’ के लिए काम करती है.
ईवीएम की डिजाईन और टेक्नोलॉजी (Electronic Voting Machine design and technology)
भारतीय ईवीएम, ‘टू पीस सिस्टम’ के अधीन काम करता है. इसका एक हिस्सा बैलेट यूनिट होता है, जिसमे पार्टियों और उम्मीदवारों के तहत कई बटन होते हैं, जो पांच मीटर लम्बी तार से इसकी दूसरी ईकाई इलेक्ट्रॉनिक बैलेट बॉक्स से जुडी होती है. वोटिंग बूथ में निर्वाचन आयोग द्वारा भेजे गये प्रतिनिधि मौजूद होते हैं. वोट डालते समय वोटर को बैलेट पेपर की जगह ईवीएम की बैलेट यूनिट में विभिन्न पार्टियों के चुनाव चिन्ह के सामने दिए गये नीले रंग के बटन को दबा कर वोट देना होता है. इस मशीन में प्रयोग होने वाला कंट्रोलर की प्रोग्रामिंग इतनी ज़बरदस्त होती है कि, एक बार ईवीएम बन जाने के बाद कोई उस प्रोग्राम को बदल नहीं सकता है. इसमें सिलीका का प्रयोग होता है.
इस मशीन में इस्तेमाल होने वाली बैटरी छः वाल्ट की एल्कलाइन बैटरी होती है. ईवीएम की ये डिजाईन देश की किसी भी जगह आसानी से इस्तेमाल होती है. ईवीएम में बैटरी इस्तेमाल होने की वजह से ये देश के उन जगहों के चुनावों में भी इसका इस्तेमाल होता है, जहाँ आज भी बिजली नहीं पहुँच पायी है. इस मशीन को इस तरह बनाया गया है कि, वोट देने वाले को किसी तरह के करंट के झटके का डर नहीं होता. एक बार किसी उमीदवार को वोट दे देने के बाद मशीन तुरंत लॉक हो जाती है, ताकि एक ही बटन को लगातार दो- तीन बार दबा कर एक ही उमीदवार को एक आदमी द्वारा वोट न दिया जा सके. इस तरह ईवीएम चुनाव में “एक आदमी एक वोट” के नियम को बनाए रखता है, और चुनाव में भ्रष्टाचार कम करता है. इसमें अधिकतम चौसंठ उम्मीदवारों के लिए वोटिंग कराई जा सकती है, उससे अधिक उमीदवार होने पर बैलेट बॉक्स का इस्तेमाल होता है.
ईवीएम का पहली बार प्रयोग (Electronic Voting Machine used for first time)
साल 1989 – 90 के बीच अस्तित्व में आने वाले ईवीएम का प्रयोग पहली बार सन 1998 में तीन राज्यों के उपचुनाव में 16 विधान सभा निर्वाचन क्षेत्र के लिए किया गया. इनमे मध्यप्रदेश राज्य की छः सीटें, राजस्थान की पांच सीटें और दिल्ली की छः सीटें सम्मिलित थीं.
ईवीएम के इस्तेमाल से लाभ (Electronic Voting Machine benefits)
लोकतंत्र को मजबूत करने में इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग का बहुत बड़ा योगदान है. इसके इस्तेमाल के कुछ फ़ायदे इस प्रकार हैं-
एक मशीन को कई विभिन्न चुनावों में काम में लगाया जा सकता है. यद्यपि शुरू में बहुत अधिक खर्च होता है, परन्तु मशीन एक बार ख़रीद लेने पर निर्वाचन आयोग को बैलेट पेपर पर बार- बार कर्चा करने से मुक्ति मिल जाती है.
बहुत हल्का और पोर्टेबल होने की वजह से ईवीएम को एक जगह से दूसरी जगह पर बहुत आसानी से ले जाया जा सकता है.
इसमें वोट गणना बहुत तेज़ी से होती है, जो किसी अशिक्षित क्षेत्र में बहुत लाभदायक होता है. किसी भी अशिक्षित आदमी को बैलेट पेपर की जगह ईवीएम में वोट करने में भी आसानी होती है.
इससे फाल्स वोटिंग को बहुत बड़े पैमाने पर भी क़ाबू में किया गया है, जहाँ बैलेट सिस्टम में एक ही आदमी अपने पसंदीदा उमीदवार को एक से ज्यादा वोट दे पाता
ईवीएम में वोट देने की वजह से वे अब लेस वोट नहीं दे पाते और लोकतंत्र मजबूत होती है.
ईवीएम में स्थित मेमोरी रिजल्ट को ख़ुद में तब तक सुरक्षित रखता है, जब तक कि उसे कोई अधिकारी मिटा न दे.
इसमें बैटरी का स्विच मौजूद है. एक बार पोलिंग ख़त्म हो जाने पर बैटरी का स्विच ऑफ किया जा सकता है.
एक ईवीएम अधिकतम 15 वर्षों तक चल सकता है.
ईवीएम इस्तेमाल करने का तरीक़ा (How to use Electronic Voting Machine)
एक बार किसी आदमी द्वारा ईवीएम में वोट डाल दिए जाने पर कंट्रोल यूनिट का पुल्लिंग ऑफिसर इन- चार्ज मशीन मे दिया गया ‘क्लोज’ का बटन दबा देता है. इसके बाद ईवीएम कोई वोट नहीं ग्रहण करता. पोल बंद हो जाने पर बैलटिंग यूनिट कण्ट्रोल यूनिट से डिसकनेक्ट हो जाता है. वोट सिर्फ और सिर्फ बैलेट यूनिट में ही रिकॉर्ड हो सकता है. पोलिंग ख़त्म होने के बाद प्रिसाईडिंग ऑफिसर प्रत्येक पोलिंग एजेंट्स को कुल रिकॉर्ड हुए वोटों का एक ब्यौरा देते हैं. वोट गणना के समय में गिने जा रहे वोटों को इस ब्योरे से मिलाया जाता है, और इसमें यदि कोई विसंगति दिखती है, तो काउंटिंग एजेंट्स उसका ख़ुलासा करता है. मत गणना के समय मशीन में दिए गये ‘रिजल्ट बटन’ दबाकर तात्कालिक रिजल्ट्स की घोषणा होती है. कोई धोखे से रिजल्ट बटन पूरी गणना के पहले ही न दबा दे इससे बचने के लिए दो रास्ते हैं. पहला ये कि पोलिंग बूथ में वोटिंग ख़त्म हो जाने के बाद जब तक पोलिंग ऑफिसर –इनचार्ज क्लोज का बटन नहीं दबा देता है, तब तक रिजल्ट का बटन नही दबाया जा सकता. ये बटन छुपा हुआ एक पूरी तरह से सील रहता है. ये सिर्फ तब ही खोला जाता है, जब मशीन मत गणना केंद्र में होती है.
ईवीएम की होने वाली परेशानी (Electronic Voting Machine disadvantages)
इस के प्रयोग में एक बड़ी दिक्क़त ये है कि एक उमीदवार ये जान सकता है कि कितने लोगों ने उसे अपना वोट दिया है. इस वजह से जीतने वाला उमीदवार अपने क्षेत्र के उन लोगों के साथ पक्ष पात कर सकता है, जिन लोगों ने उन्हें वोट नहीं दिया. भारत के निर्वाचन आयोग ने ईवीएम के उत्पादक कंपनियों को इसमें एक ‘टोटलाइज़र’ लगाने की बात कही है, जिससे सिर्फ पूर्ण रिजल्ट का पता लगे न कि किसी उमीदवार के व्यक्तिगत रिजल्ट का. इसका निर्माण इस तरह से किये गया है, कि वोटिंग के समय सिर्फ और सिर्फ एक ही आदमी वोटिंग मशीन के पास रहता है.
ईवीएम की सुरक्षा के मसले (Electronic Voting Machine security issues)
भारतीय इवीएम के लिए होने वाले एक अंतर्राष्ट्रीय कांफ्रेंस में ये पता लगा कि भारतीय चुनाव में इस्तेमाल होने वाले ईवीएम को जनता दल के अध्यक्ष और भारत सरकार में भूत पूर्व क़ानून मंत्री सुभ्रमंयम स्वामी की अध्यक्षता में रखा गया है. इससे हुआ ये कि भारत का निर्वाचन आयोग ईवीएम के प्रति अपनी जिम्मेदारियों को ठीक से नहीं निभा पा रहा था, और इस सिस्टम में पारदर्शिता की कमी आ रही थी. अप्रैल 2010 में हरी प्रसाद के नेतृत्व में एक स्वाधीन जांच आयोग, जिसमे रोप गोंग्ग्रिजिप और जे. अलेक्स हलदेर्मन भी थे. एक रिपोर्ट तैयार किया गया. इस वीडियो में असली ईवीएम पर शोधकर्ताओं द्वारा दो तकनीकी हमले दिखाए गये.
इन धमकियों और ऐसी घटनाओं से पार पाने के लिए शोधकर्ताओं ने वोटिंग सिस्टम को और भी अधिक पारदर्शी बनाने की कोशिश की. इसके लिए उन लोगों ने पेपर बैलेट, काउंट ऑप्टिकल स्कैन और वोटर वेरीफाईड पेपर ऑडिट ट्रेल का सुझाव दिया. भारतीय निर्वाचन आयोग ने कहा कि ईवीआईएम में ऐसी चीज़ों को करने के लिए सबसे पहले तो ऐसी हरक़त करने के किसी आदमी को ईवीएम को खोलना होगा, साथ ही इसके लिए बहुत ऊंची तकनीकी बुद्धि का इस्तेमाल करना होगा. ईवीएम को बहुत ही कड़ी से कड़ी निगरानी में रखा जाता है, और किसी को उसे हाथ लगाने की इजाज़त नहीं होती. साथ ही एक चुनाव के परिणाम में फेर बदल करने के लिए अधिक से अधिक मशीनों की आवश्यकता होगी. 25 जुलाई 2011 में भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने एक पिटीशन के तहत निर्वाचन आयोग को ईवीएम को और बेहतर बना कर तीन महीने के अन्दर रिपोर्ट पेश करने को कहा. पिटीशन देने वाले राजेंद्र सत्यनारायण गिल्डा का ये कहना था कि निर्वाचन आयोग ईवीएम के पारंपरिक प्रस्तुतिकरण के साथ ही चुनाव करवा रही है. इनके अनुसार ईवीएम में एक ऐसी सुविधा होनी चाहिए कि वोटर ने जिस पार्टी को वोट दिया है, उस पार्टी के चुनाव चिन्ह के साथ एक पुर्जा ईवीएम से निकले, ताकि इसकी पुष्टि हो सके कि वोट वोटर द्वारा समर्थित उम्मीदवार को ही गया है.
17 जनवरी 2012 को सुब्भ्रयामंयम स्वामी ने दिल्ली उच्च न्यायालय में एक पिटीशन दायर की, जिसमे उन्होंने लिखा था कि अभी इस्तेमाल हो रहे ईवीएम किसी तरह से भी मिलावट विहीन नहीं है. इसी साल 27 सितम्बर 2012 में सुब्रह्मण्यम स्वामी ने दिल्ली उच्च न्यायालय के ख़िलाफ़ ये अपील की, कि उनके VVPAT विचार पर ध्यान नहीं दिया जा रहा है. निर्वाचन आयोग के वकील अशोक देसाई ने इस पर एक पिटीशन जमा किया, जिसमे लिखा था कि चुनाव आयोग इस विचार पर काम कर रही है. इसके अलावा कई और लोगों ने भी समय समय पर ईवीएम में बदलाव लाने के लिए न्यायालयों में पिटिशन दायर किया. गोवाहाटी उच्च न्यायालय में असोम गण परिषद् की एक ऐसी ही पिटीशन पर सुनवाई अभी भी चल रही है.
मतदाता – सत्यापन कागज लेखा परीक्षा परिक्षण (Voter Verified Paper Audit Trail (VVPAT))
अक्टूबर 2008 में निर्वाचन आयोग ने आईआईटी मुंबई के पूर्व निर्देशक पी वी इन्दिरसन की अध्यक्षता में ईवीएम में VVPAT व्यवस्था लाने के लिए एक तकनीकी टीम का गठन किया. कमेटी को ये काम सौंपा गया कि कमीटी ईवीएम में ऐसी व्यवस्था लाये, जिसके ज़रिये वोट करने वाले नागरिक को वोट करने के बाद एक काग़ज़ का परचा मिले, जिसमे उसके द्वारा निर्वाचित उमीदवार का चुनाव चिन्ह मौजूद हो. कमेटी ने जल्द ही इस काम को अंजाम दिया.
21 जून 2011 को निर्वाचन आयोग ने कमेटी द्वरा सुझाये गये VVPAT व्यवस्था को स्वीकार किया, और 26 जुलाई 2011 में इस व्यवस्था के तहत जम्मू कश्मीर के लद्दाख, केरला के थिरुवानान्थापुरम, मेघालय के चेरापूंजी, पूर्वी दिल्ली और राजस्थान के जैसलमेर में इस सिस्टम के द्वारा चुनाव करवाया गया.
जल्द ही दिल्ली उच्च न्यायालय से ये परिणाम आया कि ईवीएम “टेम्पर – प्रूफ” नहीं है. भारत निर्वाचन आयोग ने 19 जनवरी 2012 को इलेक्ट्रॉनिक कारपोरेशन और भारत इलेक्ट्रॉनिक लिमिटेड को ये आदेश दिए, कि नए ईवीएम में काग़ज़ी पुर्जे प्रिंट होने की सुविधा होनी ज़रूरी है. जब कोई वोटर अपने उम्मीदवार को वोट देता है तो उस पुर्जे में उमीदवार का नाम बैलेट मशीन में दिया गया सीरियल नंबर और उमीदवार का चुनाव चिन्ह उस पुर्जे में छपा होना चाहिए. VVPAT व्यवस्था 543 में से आठ सीटों पर प्रारंभिक प्रोजेक्ट के तौर पर इस्तेमाल करके देखा गया. इनमे लखनऊ, गांधीनगर, साउथ बंगलोर, सेंट्रल चेन्नई, जादवपुर, पटना साहिब और मिजोरम सीटें थीं.
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